घर में घर में
घर में अंतर्द्वंद्व है, और बाहर मेहमान। समझ नहीं आता मुझे कैसे करूँ बयान।। घर में अंतर्द्वंद्व है, और बाहर मेहमान। समझ नहीं आता मुझे कैसे करूँ बयान।।
घर बैठ भाई इसमें तेरा क्या जाएगा ना घर बैठा तो घाटा ही घाटा पाएगा। घर बैठ भाई इसमें तेरा क्या जाएगा ना घर बैठा तो घाटा ही घाटा पाएगा।
हर कोई यही सोचता है मेरे बाहर जाने से क्या होगा हर कोई यही सोचता है मेरे बाहर जाने से क्या होगा
देख सपना देख एक नही हजारों में देख पर ऐसा न देख प्यारे जो कभी साकार न हो। देख सपना देख एक नही हजारों में देख पर ऐसा न देख प्यारे जो कभी साकार न हो।
मेरे सपनों का भारत , काश ! तीन सौ वर्ष पूर्व की गंगा सा पावन, निर्मल होता! मेरे सपनों का भारत , काश ! तीन सौ वर्ष पूर्व की गंगा सा पावन, निर्मल होता!